ऑफिस में मेरे सहकर्मी और मित्र, उत्तराखंड के गोचर निवासी सुशील जोशी पिछले 3 -4 दिनों से बहुत ही उदास और परेशान नज़र आ रहे थे। वो रोज़ ऑफिस आते , चुपचाप अपना काम निबटाते और बिना किसी से बात किये अपने घर निकल जाते। एक दिन जब मुझसे नहीं रहा गया तो मैंने उनकी परेशानी का कारण आखिर पूछ ही लिया। मेरे पूछते ही वो मेरी तरफ देखकर फफक फफककर रो पड़े। मैं अवाक् रह गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैंने ऐसा क्या पूछ लिया जो जोशी जी इतना आहत हो गए। अब मेरे लिए उनकी परेशानी का कारण जानना और भी आवश्यक हो गया क्यूंकि हमेशा मुस्कराते और गुनगुनाते रहने वाले जोशी जी, ऐसे तो बिलकुल भी ना थे। जरूर कुछ ऐसा था जो उनको अंदर ही अंदर कचोट रहा था, जिसके बारे में वो लगातार सोच सोचकर खुद को ही कोस रहे थे।
उनको हिम्मत देते हुए मैंने थोड़ा संभाला और फिर से उनसे वही सवाल किया। इस बार उन्होंने बताया कि उनकी माताजी और पिताजी उत्तराखंड में अकेले रहते हैं। 79 वर्षीय उनके पिता फ़ौज से रिटायर हैं और उन्होंने नोएडा में इनके पास ना रहने का फैसला करते हुए अपने गांव गोचर में रहने का फैसला किया। इनके पिताजी डायबिटीज , हाइपरटेंशन , किडनी से सम्बंधित गंभीर बिमारियों से पीड़ित हैं और उनका इलाज़ नोएडा से ही चलता है। हर महीने वो डॉक्टर से सलाह लेकर उनके लिए जीवन रक्षक दवाइयां यहाँ नोएडा से उनको कूरियर के माध्यम से भेजते थे। अब कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन के कारण कोई भी कूरियर सर्विस वाला सेवाएं नहीं दे रहा है और पिताजी की दवाई वहां खत्म हो गयी है। रोज़ उनके फ़ोन आ रहे हैं और मैं बेबस होकर उनको बस दिलासा दे रहा हूँ कि आज नहीं आयी तो कल दवाई पहुँच जाएगी,मैं व्यवस्था कर रहा हूँ। जबकि सच ये है कि मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा हूँ। पिताजी शायद अब नहीं बचेंगे , यह कहते हुए वो पुनः रोने लगे।
समस्या वाकई गंभीर थी और मैं भी रातभर इस विषय को लेकर चिंतन करता रहा। अगले दिन सुबह जब फिर से उनसे भेंट हुई तो मैंने उनसे कहा कि सरकार ऐसे समय में सबकी मदद कर रही है तो क्यों ना सरकार से ही गुहार लगाई जाये। तकनीक के इस आधुनिक दौर ने निःसंदेह संवाद करने के नए नए रास्ते खोल दिए हैं। इसी क्रम में ट्विटर पर जोशी जी ने दवाई भेजने की गुहार डाक विभाग से लगाते हुए इस विभाग के मंत्री को ट्वीट किया। सुबह किये गए ट्वीट का जब शाम तक कोई जवाब नहीं मिला तो आशा फिर से निराशा में बदलने लगी।
अगले दिन का सूर्योदय जोशी जी की समस्या का समाधान लेकर आया। सुबह सुबह उनको डाक विभाग की तरफ से एक फ़ोन आया। खुद को डाक विभाग का अधिकारी बताते हुए उनको सारी जानकारी जोशी जी से ली और उनको गोल डाक खाना जाकर पार्सल देने को कहा। जोशी जी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने तुरंत दिल्ली जाकर पार्सल जमा कर दिया। अगले दिन शाम को ही पिताजी का फ़ोन आ गया कि दवाई पहुँच गयी। सारा किस्सा सुनाते हुए अंत में जोशी जी के मुँह से बस इतना ही निकला कि यह तो चमत्कार हो गया।
कोरोना वायरस से उत्पन्न हुए इस महामारी के संकट में भारतीय डाक सेवा ऐसे अनेक चमत्कार कर रही है। जहाँ एक ओर जीवन रक्षक दवाईयां मरीज़ो को पहुंचाई जा रही हैं ,वहीँ छोटे बैंक बनकर घर घर जाकर नकदी भी बांटी जा रही है। गांव में डाकिया हाथ वाली मशीन से 10000 तक की राशि, उपभोग्ता के आधार कार्ड पर हाथो हाथ दे रहा है। सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सीधे बैंक खातों में डाली जा रही राशि अब बैंक से सीधे अंतिम उस व्यक्ति तक पहुँच रही है जो इसका हक़दार है। अयोध्या में चाहे नांव में बैठकर लोगों को पैसे पहुँचाने की तस्वीर हों , या प्रधानमंत्री द्वारा खेत में किसान को बीज खरीदने के लिए पैसे पहुँचाने के लिए डाककर्मी की प्रशंसा हो , भारतीय डाक ने इस संकट की घडी में अनुकरणीय काम किया है। आंकड़ों पर नज़र डालें तो लॉकडाउन के बाद से डाक घरों के माध्यम से तक़रीबन 500 करोड़ रुपया गरीबों किसानों को और लगभग 100 टन जीवनरक्षक दवाईयां देश के हर कोने में मरीज़ों तक पहुँचाई गई हैं। गृह मंत्रालय की संयुक्त सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने बताया कि COVID -19 के दौरान भारतीय डाक की काफी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भारतीय डाक ने मालवाहक विमानों और लाल मेल मोटरवैन द्वारा दवाईयां, कोविड परिक्षण किट और चिकित्सा के लिए आवश्यक उपकरण जैसी महत्वपूर्ण चीज़ों का वितरण किया है। उन्होंने बताया कि भारतीय डाक ने स्थानीय प्रशासन और गैर सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर राशन का भी वितरण किया है और जरूरतमंदों तक हर संभव मदद पहुँचाने में योगदान दिया है ।
भारतीय डाक सेवा अपने विशाल नेटवर्क की वजह से विश्व की सबसे बड़ी डाक सेवा के रूप में स्थापित है। जहाँ सन 1947 में स्वतंत्रता मिलने के समय देश में कुल डाकघरों की संख्या 23344 थी , वहीँ अब यह संख्या बढ़कर 155341 हो गयी है। भारत के कुल क्षेत्रफल लगभग 3287263 वर्ग किमी में एक डाकघर सामान्यतः 21. 56 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करता है और इस हिसाब से एक डाकघर किसी एक क्षेत्र में 7753 लोगों को अपनी सेवाएं देता है।
यूँ तो यह कोरोना संकट काल चिकित्साकर्मियों और पुलिसकर्मियों समेत सभी कोरोना वारियर्स के विशेष योगदान के लिए याद किया जायेगा लेकिन इसमें दोमत नहीं हैं कि भारतीय डाक सेवा के इतने बड़े तंत्र का भी इस संकट के समय में बखूबी इस्तेमाल हुआ है और उनके सराहनीय प्रयासों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। लाल रंग की यह गाड़ी अब केवल सन्देश पहुंचाने के ही काम नहीं आती अपितु यह लोगों की जान बचाने और रोटी खिलाने में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है। देश पर आये इतने बड़े संकट में तमाम कोरोना वारियर्स के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर काम करती है, चारों तरफ फैली निराशा और उदासी के बीच देवदूत बनकर लोगों के चेहरे पर खुशी और राहत देती है।