सालिन्द्र सजवान गढ़वाल के सुदूर गाँव में रहता है, लेकिन बड़ी आसानी से ऑनलाइन बैंकिंग का उपयोग कर लेता है, सालिन्द्र एक ट्रैकिंग गाइड है और वह ख़ुशी-ख़ुशी अपने खाते की जानकारी ग्राहकों के साथ साँझा करता है ताकि लोग बुकिंग का एडवांस नेटबैंकिग के माध्यम से जमा करा सकें।
कक्षा 9 में स्कूल छोड़ने वाला सजवान उत्तराखण्ड के टिहरी गढ़वाल जिले के पंतवारी गाँव में रहता है। कुछ साल पहले तक सजवान को भी अपने क्षेत्र में रहने वाले अन्य लोगों की भाँति वर्ष के अधिकतर समय काम की तलाश में दिल्ली या देहरादून जाना पड़ता था।
लेकिन अपने क्षेत्र में बढ़ते पर्यटकों के आगमन से अब उसे काम की तलाश में शहर नहीं जाना पड़ता, सजवान का कहना है —
मैं पहले दूसरी कंपनियों को ट्रैकिंग में मदद करता था, लेकिन अब मैंने अपना काम शुरू किया है जिसमें मैं 2000 रुपए के एक दिन के पैकेज में एक अच्छा टेंट, सोने के लिए बिस्तर के साथ-साथ गढ़वाली तरीके से बना हुआ स्थानीय खाने का मजा भी देता हूँ।
3022 मीटर उचे नाग टिब्बा पॉइंट पर ट्रेकिंग कर पैदल यात्रा करने वालों के लिए पंतवारी गाँव एक मुख्य आधार शिविर है। गंगोत्री घाटी में हमेशा धार्मिक यात्रियों का आना देखा जाता है। इसके विपरीत यामुनोत्री घाटी का यह क्षेत्र हमेशा यात्रियों से दूर रहा है क्यूकि यहाँ कोई प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है ही नहीं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यात्री अब कम भीड़-भाड़ वाले, शांत तथा नए स्थान की तलाश में अब इस छोटे से गाँव में आने लगे हैं। यहाँ की आबादी लगभग 600 की है।
इसके साथ साथ मसूरी के समीप होने के कारण भी लोगों का आना बढ़ने लगा। उत्तरकाशी में एक गाइड और होटल चलने वाले आमोद पंवार के मुताबिक —
यहाँ से 3 घंटे की ड्राइव करके मसूरी पहुँचा जा सकता है। पहले यहाँ वे ही लोग आते थे जिनमें पहाड़ चढ़ने का उत्सुकता होती है। लेकिन अब परिस्थिति बदली है और अब सभी तरह के पर्यटक यहाँ आने लगे हैं। इनमें से बहुत से लोग सप्ताहान्त की छुटियों का आनन्द रंग बिरंगे पक्षियों के साथ हिमालय की खुबसूरत पहाडियों के नज़ारों में लेने आते हैं।
यहाँ सड़क मार्ग की अच्छी सुविधा होने के कारण सर्दियों के समय में भी आसानी से पहुँचा जा सकता है। वहीं दूसरी ओर उँचाई के अधिकतर स्थान बर्फ़बारी के कारण बंद हो जाते हैं। पर्यटकों के आगमन में भारी बढ़ोतरी से प्रभावित होकर यहाँ के लोग अब ट्रेकिंग के व्यवसाय के लिए बैंक से लोन लेने लगे हैं। स्थानीय व्यवसायी अब देशी अनुभव के कारण पर्यटकों को आकर्षित कर पेशेवर संस्थानों के साथ प्रतिस्पर्धा करने लगे हैं।
बलबीर राणा एक ग्रामीण अपने घर में पर्यटकों को पारम्परिक गढ़वाली घर में रहने का अनुभव कराते है। इन घरों में परतदार पत्थर की छत, मिट्टी से लिपि हुई दीवारें तथा लकड़ी का फर्श होता है। और खाने में स्थानीय तरीके से उगाया गया चावल और सब्ज़ियाँ एक अनूठा अनुभव देती हैं। बलबीर राणा कहते हैं —
हमारे स्थानीय व्यंजन जैसे लाल चावल स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्यवर्धक भी होते हैं क्योंकि ये बिना रासायनिक खाद के उगाये जाते हैं।
मकान बनाने का काम करने वाले जगत सिंह भंडारी के अनुसार पहले उसे काम के सिलसिले में क्षेत्र से बाहर जाना पड़ता था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यहाँ बहुत काम मिलने लगा है। पर्यटकों का आगमन बढ़ने से यहाँ के लोगों में खुशहाली आने लगी है। अब लोग अपने नए घर बनवा रहे हैं या अपने पुराने घरों की मरम्मत कराने लगे हैं।
एक दुकानदार बिरेन्द्र सिंह बताते हैं अब इस क्षेत्र में कई दुकाने खुलने लगी हैं। पर्यटन का खेती पर भी सकारात्मक असर पड़ा है। अतिथिग्रहों और छोटे होटलों मे जैविक खेती से उगाई हुई सब्जियों और चावल की भारी मात्रा में खपत होने से इनकी मांग बढ़ी है।
किसान दीपक उप्पाध्याय बताते हैं की शहर से लोग यहाँ ताज़ा हवा और शुद्ध भोजन का आनंद लेने आते हैं और बहुत से पर्यटक अपने साथ यहाँ से अन्न साथ भी ले जाते हैं।
कुछ पेशेवर कंपनियाँ स्थानीय किसानो के साथ मिलकर उनके उपजाए हुए अन्न को अपना नाम देकर मार्केट बनाने की कोशिश कर रही हैं। उन्ही में से एक है Green People इसके संस्थापक रुपेश कुमार राइ कहते हैं —
हम लोग अपने व्यवसाय और योजना का स्थानीय लोगो के साथ सामन्जस्य कर रहे हैं। यह एक संयुक्त व्यवसाय की भाँति है जिससे कि सभी को इसका पूरा लाभ मिल सके।
मोगी गाँव में रहने वाली एक गृहिणी बताती है —
अभी भी कई वीरान इलाके पहाड़ो में हैं फिर भी हमारे पास पर्याप्त प्राकृतिक आकर्षण के स्थान हैं जो शहरी लोगों को यहाँ आने के लिए विवश करते हैं।