भारत माता के सच्चे सपूत मदनलाल ढींगरा, पारिवारिक तौर पर तो कोई स्वतंत्रता सेनानी नहीं थे, परंतु निजरुचि से उन्होंने देश के लिए कुछ कर गुजरने की अलख अपने अंदर जगाई। वे अध्ययन के लिए विदेश चले गए जहां पर उन्होंने अंग्रेजी अधिकारी कर्जन वायली की गोली मारकर हत्या कर दी। तब 23 जुलाई 1909 में उनको पकड़ कर अदालत के सामने लाया गया तब वहा मदनलाल ढींगरा ने खुले शब्दों में कहा “मुझे गर्व है कि मैं अपना जीवन भारत के लिए समर्पित कर रहा हूं” आइए जानते है ऐसे स्वतंत्रता सेनानी मदन लाल ढींगरा की जीवनी-
मदन लाल ढींगरा का जन्म अमृतसर मे एक संपन्न हिंदू पंजाबी खत्री परिवार में 18 सितंबर 1883 में हुआ था।इनके पिता दितामल जी सिविल सर्जन थे,जो पूर्णत अंग्रेजी कल्चर को स्वीकार कर चुके थे, हालांकि उनकी माताजी अत्यंत धार्मिक तथा हिंदू रीति-रिवाजों को मानने वाली महिला थी। मदन लाल अपनी कॉलेज की शिक्षा लाहौर के एक कॉलेज से कर थे। उस दौरान उनको स्वतंत्रता क्रांति के आरोप में कॉलेज से निकाल दिया गया था,यह खबर उनके पिता तक पहुंचते हि पिता ने उनको घर निकाला दे दिया। जिसके बाद आजीविका संघर्ष में मदनलाल को पहले कल्रक के रूप में फिर तांगा चालक के रूप में तथा अंत में एक श्रमिक के रूप में काम करना पड़ा,फिर उन्होंने अपने बड़े भाई की सलाह पर 6 भाई तथा एक बहन की तरह हि इंग्लैंड से पढ़ाई की थी।
विदेश भूमि पर जाने के बाद भी मदनलाल ढींगरा के जीवन में देशभक्ति का जुनून कम ना हुआ था। वहां पर वे वीर विनायक दामोदर तथा श्यामजी कृष्णा वर्मा के संपर्क में आ गए। सावरकर ने वहा मदनलाल को अभिनव भारत संस्था से जोड़ा जहां उनको हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया गया। ढींगरा वहां “इंडिया हाउस” में रहते थे। जो उन दिनों का भारत की राजनीतिक का केंद्र हुआ करता था।
1 जुलाई1909 की शाम को सभी अंग्रेजी अधिकारी इंडियन नेशनल एसोसिएशन मे भाग लेने के लिए एक हॉल में इकट्ठा हो रहे थे। वहां पर भारत के सचिव के राजनीतिक सलाहकार सर विलियम हट कर्जन वायली भी आने वाले थे। मदन लाल ढींगरा अपनी पूरी तैयारी के साथ वहां पर उपस्थित थे,जैसे ही कर्जन वायली ने अपनी पत्नी के साथ हॉल में प्रवेश किया तब ढींगरा ने वाइली के मुंह पर 5 की 5 गोलियां दाग दी,जिनमें से चार पूरे निशाने पर थी, तथा अंत में एक गोली खुद को भी मारने वाले थे,लेकिन उनको अधिकारियों ने अपनी जप्त मे कर लिया था। यह उस दशक की प्रमुख घटनाओं में से एक थी।
23 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा के केस की सुनवाई बेली कोर्ट में होनी थी। मदनलाल पूर्ण जोश के साथ वहां पर उपस्थित हुए। उनको वहां पर “मृत्युदंड” की सजा सुनाई गई तब मदनलाल ढींगरा ने कहा “मुझे गर्व है मैं मातृभूमि के लिए बलिदान हो रहा हूं।” 17 अगस्त 1909 को लंदन की पेटीवैली जेल में उनको फांसी पर लटका दिया गया। मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति देकर मदनलाल ढींगरा भी हमेशा के लिए अमर हो गए।